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दुर्योधन ने भरे मन से युधिष्ठिर को प्रमाण किया और लज्जित होकर अपने नगर हस्तिनापुर की ओर चला गया। सोचिए यदि युधिष्ठिर आदि पांडव यह काम नहीं करते तो दुर्योधन आदि कौरवों को गंधर्व बंदीगृह में ही मार देते। इससे पांडवों के बीच का सबसे बड़ा कांटा निकल जाता। तब भविष्य में किसी भी प्रकार का युद्ध नहीं होत
.इस पर भी युधिष्ठिर ने चित्रसेन से दुर्योधन, दुशासन और अन्य कौरवों सहित सभी स्त्रियों को छोड़ने का आदेश दिया। तब अंत में देवराज इंद्र ने कौरवों के हाथ से मारे गए गंधर्वों को अमृत की वर्षा करने जीवित कर दिया। फिर दुर्योधन आदि कौरव को गंधर्व लोग युधिष्ठिर के पास लेकर आए और उन्होंने उन्हें युधिष्ठिर के सुपर्द कर दिया।